तमिलनाडु केस में राज्यपाल की शक्तियों पर Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला | जानिए पूरी खबर

राज्यपाल नहीं रोक सकते बिल! Supreme Court का बड़ा फैसला
तमिलनाडु मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की शक्तियों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जानिए कोर्ट ने क्या कहा और इसका देशभर की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा।
नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025 — सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों और उनकी सीमाओं को लेकर स्पष्ट निर्देश दिए हैं। यह फैसला तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच चली आ रही खींचतान के संदर्भ में आया है, जिसमें राज्यपाल पर विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को रोके रखने और अनावश्यक देरी करने के आरोप लगे थे।राज्यपाल नहीं रोक सकते बिल! Supreme Court का बड़ा फैसला
यह फैसला न केवल तमिलनाडु के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्यपाल को “संवैधानिक सीमाओं” के भीतर रहकर काम करना होगा और चुनी हुई सरकार की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा नहीं बननी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा:राज्यपाल नहीं रोक सकते बिल! Supreme Court का बड़ा फैसला
“राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित बिलों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखने का कोई अधिकार नहीं है। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल केवल तीन विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं —
- विधेयक को मंजूरी देना
- उसे राष्ट्रपति को भेजना
- कुछ आपत्तियों के साथ विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेजना
लेकिन राज्यपाल द्वारा कोई कार्रवाई न करना असंवैधानिक माना जाएगा।
तमिलनाडु मामला क्या है?
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल आर. एन. रवि ने कई विधेयकों पर जानबूझकर कोई निर्णय नहीं लिया। इनमें विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति, सामाजिक न्याय से जुड़े प्रावधान और राज्य प्रशासन से संबंधित विधेयक शामिल थे।राज्यपाल नहीं रोक सकते बिल! Supreme Court का बड़ा फैसला
राज्य सरकार का आरोप था कि राज्यपाल का यह रवैया लोकतंत्र के खिलाफ है और इससे सरकार के कार्यों में रुकावट आ रही है।
कोर्ट के निर्देश
- राज्यपाल को हर विधेयक पर तय समय सीमा में निर्णय लेना होगा।
- संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल का कार्य निष्पक्ष और गैर-राजनीतिक होना चाहिए।
- यदि राज्यपाल बिल को राष्ट्रपति के पास भेजना चाहते हैं, तो स्पष्ट कारण बताना अनिवार्य होगा।
- कोई बिल यदि बार-बार लंबित रखा जाता है, तो वह संसद की मंशा के खिलाफ होगा।
केंद्र-राज्य संबंधों पर असर
इस फैसले के बाद राज्यपाल की भूमिका को लेकर देशभर में नई बहस शुरू हो गई है। कई राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिलती रही है — जैसे महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल। ऐसे में यह निर्णय केंद्र और राज्यों के संबंधों को संतुलित करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।राज्यपाल नहीं रोक सकते बिल! Supreme Court का बड़ा फैसला
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा:
“यह लोकतंत्र की जीत है। राज्यपाल का कार्यालय राजनीतिक एजेंडा चलाने का मंच नहीं होना चाहिए।”
भाजपा की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया जाएगा, लेकिन राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाना अनुचित है क्योंकि वे संविधान के संरक्षक होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राज्यपालों की भूमिका को लेकर एक नई दिशा तय करता है। यह न केवल राज्यों की स्वायत्तता को मजबूत करेगा, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी सुनिश्चित करेगा। संविधान की मूल भावना को कायम रखने के लिए यह निर्णय एक मजबूत कदम साबित होगा।राज्यपाल नहीं रोक सकते बिल! Supreme Court का बड़ा फैसला
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